Shashikant66

Feb 14 2023, 17:26

*# हंगामा है क्यो बरपा...#*

*हंगामा* है क्यो बरपा,थोड़ा सच ही तो बोला है...। पिछले करीब एक महीने से राजनीतिक गलियारे में रामचरितमानस की एक चौपाई को लेकर हंगामा मचा हुआ है।
....ढोल,गवार,शुद्र पशु नारी।
सकल ताड़ना के अधिकारी।।
यही वो चौपाई है, जिस पर बिहार के शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर ने आपत्ति जताई है। शिक्षा मंत्री ने नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में छात्रों को संबोधित करते हुए कहा था कि, 'रामचरितमानस समाज को बाटने वाली पुस्तक है। जिसमे शुद्रो और स्त्रियों को दंड का अधिकारी बताया गया है। जो कि गलत और अपमानजनक है।' मैं शिक्षा मंत्री के बात से इतेफाक रखता हूं। उन्होंने वही कहा,जो रामचरितमानस में लिखा हुआ है। उन्होंने अलग से कुछ नही कहा। और यह छुपाने वाली बात भी नही है। कोई भी रामचरितमानस की चौपाइयों और उसके हिंदी अनुवाद को पढ़ कर समझ सकता है। शिक्षा मंत्री के बयान के बाद से बिहार के विपक्षी कुनबे में हलचल मचा है। विपक्ष ने इसे हिन्दुओ और भगवान राम का अपमान बता कर शिक्षा मंत्री को बर्खास्त करने की मांग कर दी। पर यह भगवान राम का विरोध कैसे हो गया? क्या रामचरितमानस भगवान राम ने लिखा है? यह हिन्दुओं का अपमान कैसे हो गया? *क्या शुद्र हिन्दू नही है?* अगर बीजेपी मानती है कि शूद्र हिन्दू नही है तो, बेशक यह हिन्दुओ का अपमान है।
ऐसा नही है कि यह अपने तरह की पहली घटना है। रामचरितमानस/रामायण तथा तुलसीदास पर पहले भी विवाद होते रहे है। अतीत में भी रामचरितमानस की चौपाइयों पर सवाल खड़े हुए है। अगर किसी धार्मिक या साहित्यिक किताब में किसी धर्म या समुदाय विशेष पर आपत्तिजनक बाते लिखी गई है तो, निसंदेह यह उस धर्म/समुदाय तथा व्यक्ति विशेष के लिए अपमानजनक है। इस पर शांतिपूर्वक मंथन करने की जरूरत है। न कि हो-हल्ला मचा कर राजनीतिक रंग देने की।
विरोध न तो राम का है न धर्म का; न ही हिन्दुओ का। यहाँ विरोध रामचरितमानस की उस चौपाई से है,जिसमे शुद्रो और स्त्रियों के प्रति अपमानजनक बाते लिखी गई है। जाहिर सी बात है,किसी धर्मग्रंथ या साहित्यिक पुस्तक में किसी एक जाति विशेष/समुदाय का महिमामंडन किया गया है तो, उस जाती विशेष के लोगो को तो अच्छा ही लगेगा। पर जिसकी बुराई की गई है। उस व्यक्ति/जाती के लोगो को तो बुरा लगेगा ही। बस इसी बात का झगड़ा है। जिन लोगो के बारे में बुरा लिखा गया है,उनलोगों ने सवाल खड़ा कर दिया तो,लोगो को मिर्ची लग गई।
ब्राह्मणों ने शुरू से समाज मे ऐसा भ्रम फैला रखा है कि, ब्राह्मण सर्बोपरि है। श्रेष्ठ है। ब्राह्मण की बात ब्रह्मा की लकीर है। ब्राह्मण अगर किसी को गाली भी दे दे तो,उसे आशीर्वाद समझना चाहिए। बगैरा, बगैरा।रामचरितमानस,"वाल्मिकी रामायण" तथा "मनुस्मृति" में भी शुद्रो और स्त्रियों के प्रति लिखी गई जहरीली बातों की चर्चा दलित चिंतको के लेखों और पत्र-पत्रिकाओं में मिलता है। अफसोस कि हमारे समाज मे आज भी उन किताबो को बड़े श्रद्धा के साथ पढ़ा जा रहा है।
राम को पढ़ने, समझने और जपने के लिए जब "वाल्मीकि रामायण" है ही तो,ये रामचरितमानस बीच मे कहाँ से आ गया? और क्यो आया? यह बड़ा प्रश्न है। वास्तव में रामचरितमानस "वाल्मिकी रामायण" का संपादित प्रतिलिपि है। जिसे तुलसीदास ने अपने हिसाब से ब्राह्मणवादी विचारधारा को ध्यान में रख कर रचा। अगर ऐसा नही है तो, फिर रामचरितमानस की चौपाइयों में शुद्रो के लिए अपमानजनक बाते क्यो लिखी गई? आज "वाल्मिकी रामायण" कम और रामचरितमानस ज्यादा पढ़ा जाता है। क्यो? अवधि भाषा मे होने के कारण या ब्राह्मण रचित होने के कारण। अवधि या हिंदी में "रामायण" का भी अनुवाद किया जा सकता था। शम्बूक वध और सीता की अग्नि परीक्षा को लेकर भी "रामायण" पर प्रश्नचिन्ह लगे है। तुलसीदास ने "वाल्मिकी रामायण" के कुछ प्रसंगों का जिक्र रामचरितमानस में नही किया है। शायद ऐसा करने पर वे रामचरितमानस में "राम" को नायक के रूप में स्थापित नही कर पाते। और उनका रामचरितमानस जनप्रिय/लोकप्रिय नही बन पाता। बहुत से विद्वान यह मानते है कि, "उत्तरकांड" रामायण का चैप्टर नही है। इसे बाद में जोड़ा गया है। पर किसने जोड़ा? कब जोड़ा?इसकी जानकारी उनके पास नही है। है न कमाल की बात!
पिछले महीने से राजनीतिक गलियारे में जो विवाद छिड़ा हुआ है,उसके दो मायने हो सकते है। पहला राजनीतिक विरोध। दूसरा राजनीतिक विरोध की आड़ में जातिवादी विरोध।
*राजनीतिक विरोध:-* बिहार में बीजेपी विपक्ष में है तो,सरकार का विरोध लाज़मी है। वह भी तब,जब मुद्दा धर्मिक हो तो, विपक्ष (बीजेपी) कोई कसर नही छोड़ेगा। बिहार के शिक्षा मंत्री ने जब रामचरितमानस की चौपाई पर आपत्ति जताई तो,सिर कलम करने का फतवा आ जाता है। वही दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री संजय निषाद साहब ने तो राम के जन्म पर ही सवाल खड़े कर दिए। उनको लेकर कही कोई चर्चा नही। कोई फतवा नही। क्यो? क्योकि संजय निषाद बीजेपी के सहयोगी पार्टीवाले जो ठहरे।
*राजनीति की आड़ में जातिवादी विरोध:-* आज से करीब दो महीने पहले, डॉ. विकास दिब्यकीर्ति (दृस्टि कोचिंग) ने "रामायण" के शम्बूक वध और माता सीता पर "राम" द्वारा आपत्तिजनक शब्द प्रयोग करने पर सवाल खड़े किए थे। तब कोई हो-हल्ला नही मचा। कोई विवाद नही। कोई फतवा नही। तब किसी हिन्दू की भावना आहत नही हुई। क्यो? क्योकि, "रामायण" के उन श्लोकों पर सवाल खड़े करनेवाला कोई शुद्र नही,ब्राह्मण था।
ब्राह्मण और ब्राह्मणवादी लोग नही चाहते थे कि,शुद्र लोग पढ़े। इसलिए तो इन्होंने शुद्रो के पढ़ने का अधिकार छीन रखा था। आज शुद्र पढ़- लिख रहे है। समाज मे समानता और अपने हक़ की बात कर रहे तो,इन्हें दर्द हो रहा है। जैसे-जैसे ये ( ब्राह्मण और ब्राह्मणवादी विचारधारा) एक्सपोज़ हो रहे है,धर्मग्रंथो में लिखित अपनी विकृत मानसिकता वाली चौपाइयों/श्लोको को जायज ठहराने के लिए,लोगो के सामने उसे तोड़-मरोड़कर परिभाषित कर रहे है। शब्दो के अर्थ को ही बदल दे रहे है। इस तरह तो वे खुद रामचरितमानस को झूठा साबित कर रहे है। और यदि कोई दूसरा रामचरितमानस की चौपाइयों पर सवाल खड़ा कर रहा तो, इनकी नजर में वो धर्मविरोधी हो जा रहा। अगर रामचरितमानस की चौपाई सही है तो, *उसको संपादित कर के "ताड़ना" की जगह शिक्षा शब्द क्यो जोड़ा गया?*
*क्या यह सही नही है कि, शुद्रो को पढ़ने-लिखने का अधिकार नही था।*

*शूद्र अगर शास्त्र सुन ले तो उसके कानों में पिघला हुआ शीशा डालने की बात इनके ग्रंथो में नही है?*

*क्या दासी प्रथा झूंठ था?*

*क्या ये आज शुद्रो को अपने तुल्य मानते है?*

क्या ये सब भी झूठ है? आज ये अपनी गलती मानने के बजाय,शास्त्रों में वर्णित शुद्रो के लिए आपत्तिजनक बातों को जायज ठहराने पर अड़े है। यही सबसे बड़ी समस्या है। ब्राह्मण और ब्राह्मणवादी विचारधारा की यही हठता हिंदुओं को ले डूबेगी। इनका यही रवैया रहा तो,अगले पन्द्रह-बीस सालों में शुद्रो का एक बड़ा तबका धीरे-धीरे दूसरे धर्मों के तरफ प्रस्थान कर जाएंगे और हिंदुस्तान में हिन्दू अल्पसंख्यक बन जायेगा।
तुलसीदास की चौपाई "...ढोल,गवार,शुद्र,पशु नारी,सकल ताड़ना के अधिकारी" से यह साबित होता है कि, उस दौर में ब्राह्मणों का वर्चस्व था। उनके नजरो में शुद्र और नारी की दशा ग़ुलामों वाली थी। गृह मंत्री अमित शाह कहते है कि,'हमारा इतिहास ठीक से नही लिखा गया। इसलिए उसे फिर से लिखने की जरूरत है।' जब आप इतिहास को फिर से लिख सकते है तो, शास्त्रों में शुद्रो (दलित,आदिवासी, पिछड़ा) के लिए लिखी गई अपमानजनक बातों को क्यो नही हटा सकते? मेरी समझ मे आज शुद्र (दलित,आदिवासी और पिछड़ा) जिसका विरोध कर रहे है,वो तुलसीदास का विरोध नही है। ना ही रामचरितमानस और हिन्दू धर्म का विरोध है। बल्कि यह ब्राह्मण और ब्राह्मणवाद का विरोध है। जिसे बहुत चालाकी से ब्राह्मणवादी विचारधारा के लोगो ने,धर्म और भगवान का विरोध बना दिया। ताकि देश और समाज मे उन्माद फैले। शुद्रो के इस आवाज को धर्म और भगवान के अपमान के नाम पर दबा दिया जाए। पर वो दौर कुछ और था,आज का दौर कुछ और है। ये लड़ाई इतनी जल्दी खत्म होनेवाली नही है।